राहुल त्रिपाठी की रिपोर्ट
लाला भगत का मेला कानपुर के ऐतिहासिक कार्यक्रमों में एक है। क्षेत्रीय मान्यताओं के अनुसार आल्हा-उदन के समय काल से यह मेला लग रहा है। मेला मूलतः अब कानपुर देहात अर्थात रमाबाई नगर स्थित रसूलाबाद तहसील से १५ किमी पश्चिम में एक पठार नुमा छोटे से पर्वत लाला भगत गांव में लगता है। यहीं पर मुर्गा मंदिर और कालिका जी का मंदिर है। मान्यता है कि यहां कालिका मंदिर के बाहर स्थित मुर्गो को अल्हा-उदन ने मारा था जिसका धड़ तो यही लाला भगत में रह गया तथा सिर नहर पार के गांव डोर पुरवा में जा गिरा। देवी मॉ के वरदान से मुर्गे का यहां वही स्थान है जो शिव मंदिर में नादिया /गाय/ का होता है। पुरातत्व विभाग ने उक्त प्रतिमाओं सहित पूरे पठार /पर्वत/को अपने संरक्षण में लिया है। यहीं पर वार्षिक मेला अपै्रल या चैत्र के नवरात्रों में लगता है। यह मेला लगभग १५ दिनों तक चलता है। मेले में आस पास के कई जिलों से दुकानदार यहां आते हैं तथा मुर्गा मंदिर और कालिका मॉ में श्रद्धा रखने वाले भक्त को तो पूरे वर्ष तांता लगा रहता हैं। क्षेत्रीय महिलाएं फसल कटने के बाद अनाज लेकर यह जमकर नाच कर देवी को खुश करती हैं। मंदिर के पास ही प्राथमिक विद्यालय और माध्यमिक विद्यालय लाला भगत है, पास ही रामगंगा नहर बहती है। मंदिर परिसर में काली मॉ का मंदिर और हनुमान जी का मंदिर भी है। इन दोनों मंदिरों का निर्माण बीते ४ दशकों के दौरान क्षेत्र के गणमान्य व्यक्तिओं ने करवाया। परिसर में तीन अति प्राचीन कुए है। जिनमे बीते वर्षों में मेला या देवी मॉ के दर्शन करने आए भक्त जल लिया करते थे, लेकिन मंदिर के पास ही इंडिया मार्का नल लग जाने से इनका अस्तिव खतरे है। ये जर्जर हो चुके है तथा देखभाल के अभाव में इनके मजबूत स्तंभ टूट रहे है। संरक्षित स्थान होने के बावजूद कई ग्रामीण उक्त पठार के खुदाई कर घरौदा बना कर रहे है। सुरक्षा न होने के कारण मुखय मंदिर में ही शराब की बोतले आसानी देखने को मिल सकती हैं।
गांव के एक बुर्जुग ने बताया कि लाला भगत का मेला आस पास के क्षेत्र का सबसे बडा मेला था। और यही से हजारों लोग शादी बारात का सामान खरीदते थे। यहां लकड ी की बनी चीजे मशहूर हैं। नब्बे के दशक में मेले में चिडियाघर और सिनेमाघर, अजायबघर सहित कई-कई सर्कस आया करते थे लेकिन प्रशासन की शिथिलता और कस्बों और शहरों में व्यापार का विस्तारीकरण इस मेले के लिए घातक साबित हो रहा है साल-दर-साल लाला भगत का मेला अपनी चमक खोता जा रहा है।